शरीर (भौतिक)

 

       भौतिक केन्द्र : मुख्य रूप से भौतिक चीजों में व्यस्त रहता है वह व्यवस्थित जीवन पसन्द करता है ।

 

 

         दिव्य जननी,

 

              मैं अपनी सत्ता के भागों में आपकी 'दिव्य उपस्थिति' को चरितार्थ करना चाहता हूं जो शरीर तक में बिंधी हुई हो । लेकिन मैं  नहीं जानता कि यह कैसे किया जाये । आप ही मरी सत्ता का परम हेतु हैं  । तब फिर मैं अपने शरीर के कोषाणुओं तक में 'आपकी' उपस्थिति' अनुभव किये बिना क्यों जीता हूं ?

 

       भौतिक प्रकृति अन्धकारमयी और हर जगह उद्दण्ड है । उसके लिए 'भागवत उपस्थिति' के बारे में सचेतन होना बहुत कठिन है ।

 

        इसीलिए हमें धीरज धरना चाहिये और 'विजय' की निश्चिति के साथ अभीप्सा करते रहना चाहिये ।

 

       मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ हैं ।

२५ जून, १९३५

 

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       अन्धकारमयी भौतिक 'प्रकृति' पर हम जो विजय पाते हैं उनमें से हर एक आने वाली बड़ी विजय की प्रतिज्ञा होती है ।

 

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        भौतिक में सत्ता का आनन्द भगवान् के प्रति कृतज्ञता की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति है ।

१६ जून, १९४१

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(शरीर भौतिक)

 

        भगवान् हमारे शरीर के परमाणुओं तक में विद्यमान हैं ।

२२ मई, १९५४

 

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       स्वयं भौतिक सत्ता भी पूर्ण सच्चिदानन्द का आसन हो सकती है ।

२९ मई, १९५४

 

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       शरीर के लिए जानने का अर्थ है कर सकना । वस्तुत: शरीर केवल उसी को जानता है जिसे वह कर सकता है ।

२३ जून, १९५४

 

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       भौतिक में शान्ति : भगवान् जो चाहते हैं वही चाहना, इसकी सबसे अच्छी स्थिति है ।

 

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       कोषाणुओं में शान्ति : शरीर की प्रगति के लिए अनिवार्य स्थिति ।

 

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      कोषाणुओं में प्रकाश : कोषाणुओं में शुद्धि की ओर पहला चरण ।

 

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       कोषाणुओं की शुद्धि कामनाओं पर विजय के बिना नहीं पायी जा सकती । अच्छे स्वास्थ्य के लिए यही सच्ची स्थिति है ।

 

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         कल रात मैंने अपने शरीर में जिस प्रतिरोध का अनुभव किया उसकी अभूतपूर्व प्रकृति के बारे में आप दो शब्द न कहेगी ?

 

यह शरीर के कोषाणुओं में मानसिक रूप लिये हुए द्रव्य तत्त्व का प्रतिरोध

 

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है और केवल सर्वांगीण और पूर्ण परिवर्तन के द्वारा ही इस पर विजय पायी जा सकती है ।

आशीर्वाद ।

१६ जून, १९६१

 

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        क्या व्यक्ति के एकदम भौतिक कोषाणुओं में शेष सत्ता से अधिक अभीप्सा हो सकती है ?

 

यह बिलकुल सम्भव है क्योंकि अब साधना स्वयं शरीर में की जा रही है । जनवरी ११६६

 

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       आन्तरिक प्रगति इतने पर्याप्त रूप से तेज हो रही है कि बाहरी सत्ता उसके अनुसरण में कठिनाई अनुभव करती है । अब शरीर को 'भागवत शक्ति' को पाना और उसे बनाये रखना सीखना होगा ।

 

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       भौतिक में पारदर्शिता : भौतिक अपने- आपको रूपान्तर के लिए तैयार कर रहा है ।

 

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       भौतिक में आनन्द : इसका स्वागत हो, भले यह अपने- आपको कभी- कदास ही अभिव्यक्त करे ।

 

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      भौतिक शरीर में आनन्द : पूर्ण समानता और समर्पण में, समस्त कामनाओं और विरक्तियों से शुद्ध होकर भौतिक शरीर भागवत 'आनन्द' का रसपान करने को तैयार है ।

 

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     चक्रों में आनन्द : यह भौतिक परिवर्तन के अच्छे परिणामों में से एक परिणाम होगा ।

 

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     जड़- भौतिक में समग्र समतल आधार : जब तुम्हारी सारी भौतिक गतिविधियां व्यवस्थित, सुसमञ्जस और समन्वित हो जायें और जब सभी चीजें तुम्हारे अन्दर अपना स्थान पा लें और इस तरह तुम्हारी समस्त भौतिक नींव तैयार हो जाये तो वह दिव्य 'प्रकाश' और 'शक्ति' को ग्रहण करने के लिए प्रस्तुत हो जाती है ।

 

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      जड़- भौतिक चेतना में दृढ़ ठोस स्थिरता होती है ।

 

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